Babuji Ki Chudai Se Kamukta Jag Uthi Sex Kahani : मेरा नाम शालिनी है। मैं 32 साल की हूँ, एक सुंदर, कामुक और जवान औरत, जिसका जिस्म भारतीय ग्रामीण माटी की खुशबू से सराबोर है। मेरा गोरा, चिकना बदन, बड़े-बड़े रसीले चूचियाँ जो लाल साड़ी में उभरकर गाँव की मस्ती को बयां करती हैं, और मोटी, गोल, भारी गांड जो पैरों की चाल में देसी लचक लिए हुए है, किसी भी मर्द का लंड जगा सकती हैं। मेरी चूत हमेशा गीली, गरम और भूखी रहती थी, और मेरी वासना भारतीय रातों की ठंडी हवाओं में तड़पती थी, जैसे कोई राग जो अधूरा रह गया हो। मेरा पति, रमेश, 37 साल का था—लंबा, सांवला, और गाँव का साधारण किसान, लेकिन उसका 6 इंच का लंड मेरी चूत की गहराई को संतुष्ट नहीं कर पाता था। रमेश खेतों में दिनभर मेहनत करता था, और मेरी कामुकता बढ़ती जा रही थी। मेरे बाबू जी, हरि प्रसाद, 62 साल के थे—लंबे, सांवले, और मज़बूत जिस्म वाले, जिनकी धोती में मोटा, 10 इंच का लंड साफ उभरता था। उनकी देसी आँखें मेरी चूचियों और गांड पर टिकती थीं, और उनकी आवाज़ में गाँव की मिट्टी का एक जादुई, कामुक स्वर था। हमारा घर उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में था, जहाँ मैं, रमेश, और बाबू जी अक्सर अकेले रहते थे, क्योंकि मेरी सास, कमला, मंदिर में समय बिताती थीं।
एक दिन सावन की बारिश हो रही थी। गाँव में हवा में मिट्टी की खुशबू और बरसात की ठंडक थी, लेकिन मेरी चूत में एक आग जल रही थी। रमेश ने बताया, “शालिनी, मुझे 20 दिन के लिए लखनऊ जाना है। तुम बाबू जी और सास के साथ रहना, मैं जल्दी आऊँगा।” मेरी चूत सुनते ही गरम हो गई। मैंने सोचा, “20 दिन बिना चुदे कैसे रहूँगी? मेरी चूत की वासना को मोटा लंड चाहिए, जो रमेश नहीं दे पाता। बाबू जी मेरी कामुकता को शांत कर सकते हैं, जैसे गाँव का कोई राग मेरी आत्मा को छू ले।” रमेश चला गया, और घर में सिर्फ मैं और बाबू जी थे। सास मंदिर गई थीं, और शाम को मैंने एक लाल, रेशमी साड़ी पहनी थी, जिसकी पल्लू में राजस्थानी डिज़ाइन थे। मेरी चूचियाँ ब्लाउज़ से बाहर निकलने को बेताब थीं, और मेरी गांड का उभार साफ झलक रहा था। मेरे निप्पल सख्त होकर ब्लाउज़ में उभर रहे थे, और मेरी चूत गीली हो रही थी, जैसे कोई देसी नदी उफान पर हो। बाबू जी हॉल में बैठे थे, और उनकी धोती में उनका मोटा लंड तन गया। वो बोले, “शालिनी, तू तो गाँव की रानी है। मेरी लंड तुझसे तड़प रही है, जैसे खेतों की मिट्टी बारिश के लिए तरसती हो।” मेरी चूत गीली हो गई, और मैं सिसकी, “बाबू जी, ये गलत हो सकता है… लेकिन मेरी चूत की वासना को मोटा लंड चाहिए, जो रमेश नहीं दे पाता। आप मेरी कामुकता शांत कर सकते हैं, जैसे कोई देसी राग मेरी आत्मा को छू ले।”
बाबू जी उठे, और उनके हाथ मेरी साड़ी के पल्लू पर गए। वो बोले, “शालिनी, मेरी लंड तेरी चूत को फाड़ देगी। आज तेरी चूत और गांड को मेरा मोटा लंड चोदेगा, और तेरी वासना शांत होगी, जैसे गाँव का मेला मेरी आत्मा को भर दे।” मैं शरमाई, लेकिन मेरी चूत टपकने लगी। वो मेरे पास आए, और मेरी साड़ी का पल्लू खींचकर फेंक दिया। मेरी मोटी, रसीले चूचियाँ ब्लाउज़ से बाहर उछल पड़ीं, गोल, सख्त, और निप्पल लाल, उभरे हुए, जैसे कोई देसी फूल खिल गया हो। बाबू जी बोले, “शालिनी, तेरे चूचियाँ तो चूसने लायक हैं, जैसे गाँव की मलाई!” उसने मेरी एक चूची को अपने मज़बूत, खुरदुरी हाथ में लिया और ज़ोर से दबाया। उनकी उंगलियाँ मेरे निप्पल को मसल रही थीं, और उनकी गर्म, गीली जीभ मेरी चूची पर घूम रही थी। मैं सिसक उठी, “आह… बाबू जी, मेरे चूचियाँ चूस डालो… फाड़ डालो इनको… मेरी वासना बढ़ रही है, जैसे खेतों की फसल उफान पर हो!” उसने मेरी दूसरी चूची को अपने मुँह में लिया और चूसना शुरू किया। उनके दाँत मेरे निप्पल को काटते, और मेरी चूत टपकने लगी, जैसे कोई देसी नदी बहने लगे। मैंने उनकी धोती खींची, और उनका 10 इंच का मोटा, काला लंड बाहर लहराने लगा, नसें उभरी हुई और सुपारा लाल, चमकदार, जैसे कोई देसी शक्ति जाग गई हो। मैं बोली, “बाबू जी, ये तो मेरी चूत फाड़ देगा, जैसे खेत में हल चल जाए!”
बाबू जी ने मेरी साड़ी, ब्लाउज़, और सलवार एक झटके में फाड़ दी। मेरी नंगी चूचियाँ हवा में लटक रही थीं, और मेरी गांड साफ दिख रही थी। उसने मेरी पैंटी उतारी। मेरी चूत नंगी थी—गीली, गुलाबी, और गरम, उसकी हर सिलवट पानी से चमक रही थी, जैसे कोई देसी फूल खिला हो। मेरी गांड का उभार चिकना, मोटा था, जैसे गाँव की मिट्टी का ढेर। बाबू जी बोले, “शालिनी, तेरी चूत तो चुदने लायक है… मखमली, गीली, और रसीली, जैसे गाँव की मिठास!” उसने अपनी उंगलियाँ मेरी चूत में डालीं, और मैं चिल्ला उठी, “आह… बाबू जी, मेरी चूत में आग लग रही है… मेरी वासना बढ़ रही है, जैसे गाँव का राग मेरी आत्मा को छू ले!” उसने अपनी जीभ मेरी चूत पर फेरी, और मैं पागल हो गई। वो बोले, “तेरी चूत का स्वाद गज़ब है… गरम, रसीला, और देसी, जैसे गाँव की मिठाई!” उसने मेरी चूत को अपने मुँह में लिया और चूसना शुरू किया। उसकी गर्म जीभ मेरे चूत के दाने को रगड़ रही थी, और मेरी गांड उछल रही थी, जैसे कोई देसी नृत्य हो। मैं चीखी, “बाबू जी, मेरी चूत चाट डालो… मेरी वासना शांत करो… अब चोद डालो, जैसे गाँव का मेला मेरी रूह को भर दे!”
बाबू जी ने मुझे सोफे पर लिटाया। मेरी टाँगें चौड़ी कीं, और उसने अपना मोटा लंड मेरी चूत पर रगड़ा। उसका सुपारा मेरी चूत की फाँकों को चीर रहा था, जैसे कोई देसी हल मिट्टी को तोड़ दे। मैं तड़प रही थी, “डाल दे, बाबू जी… मेरी चूत को चोद डालो… मेरी वासना शांत करो, जैसे गाँव की बारिश मेरी प्यास बुझा दे!” उसने एक ज़ोरदार झटका मारा, और उसका मोटा लंड मेरी चूत में पूरा घुस गया। मेरी चूत टाइट थी, और मैं चीख पड़ी, “आह… मेरा हो गया… मेरी चूत फट गई… मेरी वासना बढ़ रही है, जैसे खेतों की फसल उफान पर हो!” बाबू जी ने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे, और मेरी चूचियाँ उछल रही थीं। उनका मोटा लंड मेरी चूत को रगड़ रहा था, और फच-फच की गीली आवाज़ कमरे में गूँज रही थी, जैसे गाँव के खेतों में बारिश की फुहारें। मेरे चूचियाँ हवा में लटककर हिल रहे थे, और बाबू जी ने उन्हें अपने मज़बूत हाथों से मसला। मैं सिसक रही थी, “चोद… और जोर से चोद… मेरी चूत को फाड़ डाल… मेरी वासना शांत करो, जैसे देसी राग मेरी आत्मा को छू ले!”
बाबू जी ने मुझे घोड़ी बनाया। मेरी मोटी, गोल गांड उनके सामने थी, चिकनी, उभरी हुई, और रसीली, जैसे गाँव की मिट्टी का ढेर। उन्होंने मेरी गांड पर चार ज़ोरदार थप्पड़ मारे, और मेरी गांड लाल होकर हिलने लगी। वो बोले, “शालिनी, तेरी गांड भी चोदूँगा… इसे मेरे मोटा लंड से फाड़ दूँगा… तेरी वासना को शांत करूँगा, जैसे गाँव का मेला मेरी शक्ति भर दे!” मैं सिसकते हुए बोली, “चोद दे, बाबू जी… मेरी गांड फाड़ डाल… मेरी कामुकता शांत करो, जैसे देसी गीत मेरी रूह को छू ले!” उन्होंने अपने मोटा लंड पर थूक और तेल लगाया, फिर मेरी गांड में धीरे से डाला। मेरी गांड टाइट थी, और मैं चीख पड़ी, “आह… मेरी गांड फट गई… मेरी वासना बढ़ रही है, जैसे खेतों की मिट्टी उफान पर हो!” बाबू जी ने हार्डकोर स्टाइल में ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारे, और मेरी गांड को चोदा। मेरी चूचियाँ हिल रही थीं, और मेरी चूत टपक रही थी। उनकी चुदाई से मेरा जिस्म काँप रहा था, जैसे गाँव की बारिश में खेत थरथराने लगें। मैं चिल्लाई, “बाबू जी, मेरी चूत और गांड दोनों फाड़ डाल… मेरी वासना शांत करो, जैसे देसी राग मेरी आत्मा को संतुष्ट कर दे!”
रात गहराई, और बाबू जी ने मुझे बेडरूम में ले जाया। उन्होंने मुझे बिस्तर पर पटका, और मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख लीं। मेरी चूत और गांड दोनों उनके सामने खुली थीं। उन्होंने मेरी चूत में मोटा लंड पेला, और मैं चिल्लाई, “आह… बाबू जी, मेरी चूत को हार्डकोर से चोद डाल… इसे फाड़ डाल… मेरी वासना शांत करो, जैसे गाँव का मेला मेरी रूह को भर दे!” उनका मोटा लंड मेरी चूत की गहराई तक जा रहा था। उन्होंने मेरे चूचियाँ अपने मुँह में लिए और चूसने लगा। मैं सिसक रही थी, “चोद… और जोर से चोद… मेरी चूत और गांड दोनों हार्डकोर से फाड़ डाल… मेरी कामुकता शांत करो, जैसे देसी नृत्य मेरी आत्मा को जगा दे!” बाबू जी ने मेरी गांड में उंगली डाली, और मैं चीखी, “मेरी गांड में मोटा लंड डाल, इसे हार्डकोर से भोसड़ा बना डाल… मेरी वासना शांत करो, जैसे गाँव की मिठास मेरी प्यास बुझा दे!” उन्होंने मेरी गांड में मोटा लंड ठूंस दिया, और मेरी चीखें कमरे में गूँजने लगीं। उनकी हार्डकोर चुदाई से मेरा जिस्म पागल हो गया, जैसे देसी रात में कोई तूफान उठे।
बाबू जी ने मुझे बागीचे में ले जाया, जहाँ गाँव की ठंडी हवा मेरे नंगे जिस्म को छू रही थी। चाँदनी रात में, खेतों की मिट्टी की खुशबू के बीच, उन्होंने मुझे पेड़ के नीचे लिटाया। शावर की जगह बारिश के पानी ने हमें भिगोया, और मेरी चूचियाँ पानी से चमक रही थीं, मेरी गांड गीली होकर और रसीली लग रही थी। उन्होंने मुझे ज़मीन पर सटाया और मेरी चूत में मोटा लंड पेला। मैं चिल्लाई, “आह… बाबू जी, मेरी चूत को हार्डकोर से चोद डाल… इसे फाड़ डाल… मेरी वासना शांत करो, जैसे गाँव का राग मेरी रूह को संतुष्ट कर दे!” उनका मोटा लंड मेरी चूत की गहराई तक जा रहा था, और बारिश मेरे चूचियों पर टपक रही थी। वो बोले, “शालिनी, तेरी चूत मेरे मोटा लंड की गुलाम है… इसे हार्डकोर से फाड़ दूँगा… तेरी वासना शांत होगी, जैसे गाँव का मेला मेरी शक्ति भर दे!” मैं सिसकी, “चोद… और जोर से चोद… मेरी चूत और गांड दोनों हार्डकोर से फाड़ डाल… मेरी कामुकता शांत करो, जैसे देसी नदी मेरी प्यास बुझा दे!”
सुबह हुई, और मैं बाबू जी की बाहों में नंगी पड़ी थी। मेरी चूत सूजकर लाल हो गई थी, गांड फटकर दर्द से काँप रही थी, और मेरे चूचियाँ नीले पड़ गए थे। वो बोले, “शालिनी, तेरी चूत और गांड मेरे मोटा लंड की गुलाम हैं। मैंने तेरी वासना शांत कर दी, जैसे गाँव का राग मेरी आत्मा को छू ले।” मैंने उसके मोटा लंड को मुँह में लिया और चूसते हुए बोली, “बाबू जी, मेरी चूत को फिर हार्डकोर से चोद, इसे फाड़ डाल… मेरी गांड को भी हार्डकोर से भोसड़ा बना डाल… आपने मेरी वासना शांत की, लेकिन मेरी कामुकता अभी भी तड़प रही है, जैसे देसी मेला मेरी रूह को बुला रहा हो!” हमने सुबह की गरम, हार्डकोर चुदाई शुरू की, खेतों की मिट्टी पर, बारिश की बूंदों के बीच। यह एक वाइल्ड, हॉट, और देसी कामुक रात और सुबह थी, जो कभी खत्म नहीं हुई। मेरी वासना शांत हुई, लेकिन मेरी चूत बाबू जी के मोटा लंड की गुलाम हो गई, जैसे गाँव की मिट्टी मेरी आत्मा में समा गई हो।