मेरा नाम राहुल है, और मैं 25 साल का हूँ। मेरी छोटी बहन, नीतू, 22 साल की है—गोरी, लंबी, और उसके चूचे और मोटी गांड देखकर कोई भी पागल हो जाए। हमारा परिवार छोटा है, और मम्मी-पापा इस साल होली के लिए अपने दोस्तों के यहाँ गए थे, जिससे घर में सिर्फ़ मैं और नीतू थे। होली का दिन था, और हवाओं में रंगों की महक थी। मैंने सोचा था कि इस बार होली बस रंगों और मस्ती तक सीमित रहेगी, लेकिन नीतू ने इसे एक अलग ही रंग में रंग दिया।
सुबह की शुरुआत हुई। नीतू ने हल्की सी पारदर्शी साड़ी पहनी थी, जिसमें उसके चूचे और नाभि साफ़ दिख रहे थे। “भैया, आओ होली खेलें!” उसने हँसते हुए कहा और मेरे ऊपर गुलाल डाल दिया। मैंने भी उसे रंग लगाया, लेकिन उसकी साड़ी में रंग फैलते देखकर मेरा मन बेकाबू हो गया। “नीतू, तू बहुत सेक्सी लग रही है,” मैंने मजाक में कहा। उसने शरमाते हुए कहा, “भैया, तुम भी तो मस्त हो, अब और रंग लगाऊँ?” और उसने मेरी टी-शर्ट उतार दी। मेरी छाती पर उसका हाथ रगड़ते हुए उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
हम दोनों बरामदे में थे, और होली की मस्ती में बरसाती पानी की टंकी से पानी डाला। नीतू का बदन भीग गया, और उसकी साड़ी चिपक गई। उसके चूचे साफ़ दिख रहे थे, और मेरी चूत की भूख जाग उठी। “भैया, मुझे और रंग दो,” नीतू ने कहा और मेरे पास आकर लिपट गई। उसकी नरम चूचों का स्पर्श मेरे जिस्म में आग लगा गया। मैंने उसकी कमर पकड़ी और कहा, “नीतू, ये होली तो खतरनाक हो रही है।” उसने मेरी आँखों में देखा और फुसफुसाई, “तो फिर इसे और गर्म करो, भैया।”
मैंने उसे बरामदे की दीवार से सटा दिया। “नीतू, तेरा ये बदन मुझे तड़पा रहा है,” मैंने कहा और उसकी साड़ी का पल्लू खींच दिया। उसके चूचे मेरे सामने थे, गीले और चमकते हुए। “भैया, मेरे चूचे छूओ,” नीतू ने सिसकी। मैंने उसके चूचों को मसलना शुरू किया। “क्या मस्त चूचे हैं तेरे,” मैंने कहा और एक निप्पल को मुँह में भर लिया। “आह्ह, भैया, चूसो!” नीतू चिल्लाई। उसकी चूत से रस टपकने लगा, और मैंने उसकी साड़ी पूरी उतार दी।
नीतू पूरी नंगी थी। “भैया, मेरी चूत को रंग दो,” उसने कहा और मेरे हाथ को अपनी चूत पर रख दिया। मैंने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत में डाली। “नीतू, तेरी चूत तो रस से भरी है,” मैंने कहा। उसने मेरी पैंट खोली और मेरा लंड बाहर निकाला। “भैया, ये तो बहुत मोटा है, मेरी चूत फाड़ देगा!” उसने कहा और मेरे लंड को सहलाने लगी। मैंने उसे ज़मीन पर लिटाया और उसकी चूत पर लंड रगड़ा। “पहले तेरी चूत चोदूँगा,” मैंने कहा और एक ज़ोरदार धक्का मारा। “आह्ह, भैया, मेरी चूत फट गई!” नीतू चीखी।
मैंने तेज़ी से धक्के मारने शुरू किए। नीतू की चूत मेरे लंड को चूस रही थी। “भैया, और जोर से चोदो, होली की मस्ती बढ़ाओ!” वह चिल्लाई। उसकी गांड हर धक्के के साथ हवा में उछल रही थी। मैंने उसकी गांड पर थप्पड़ मारा। “मारो, भैया, मेरी गांड लाल कर दो!” नीतू ने कहा। मैंने उसकी गांड को मसलते हुए कहा, “अब तेरी गांड भी चोदूँगा।” उसने मेरे लंड को अपनी गांड पर रगड़ा और कहा, “डाल दो, भैया, मेरी गांड में लंड चाहती हूँ!”
मैंने अपना लंड उसकी गांड में धीरे-धीरे डाला। “आह्ह, भैया, मेरी गांड फट गई!” नीतू की चीखें बरामदे में गूँज उठीं। मैंने धीरे-धीरे धक्के बढ़ाए। “नीतू, तेरी गांड बहुत टाइट है,” मैंने कहा। उसकी चूत से रस बह रहा था, और मैंने अपनी उंगलियाँ उसकी चूत में डाल दीं। “भैया, मेरी चूत और गांड दोनों को चोदो!” वह सिसक उठी। मैंने उसे कुतिया की तरह झुकाया और दोनों छेदों में खेलना शुरू किया।
होली की मस्ती चरम पर थी। मैंने नीतू को उठाया और उसे बरामदे की मेज पर लिटाया। “भैया, मुझे और चोदो, होली की रंगीन चुदाई करो!” उसने कहा। मैंने उसकी टाँगें फैलाईं और अपनी जीभ से उसकी चूत चाटने लगा। “आह्ह, भैया, चाटो, मेरी चूत का रस पी जाओ!” नीतू चिल्लाई। उसका रस मेरे मुँह में भर गया। “नीतू, तेरी चूत का स्वाद गज़ब है,” मैंने कहा और लंड फिर से उसकी चूत में ठोका।
चुदाई का नशा बढ़ता गया। मैंने नीतू को उल्टा कर दिया और उसकी गांड में फिर लंड डाला। “भैया, मेरी गांड को फाड़ दो!” वह चीखी। मैंने तेज़ी से धक्के मारे, और उसकी गांड मेरे लंड को निचोड़ रही थी। “नीतू, तेरी गांड तो चूत से भी मस्त है,” मैंने कहा। उसने मेरे होंठ चूसे और कहा, “भैया, तुम्हारा लंड मेरी जान ले लेगा!” हम दोनों की साँसें तेज़ हो गईं।
दोपहर हो चुकी थी। हम बरामदे से अंदर कमरे में गए। नीतू ने मुझे बिस्तर पर धक्का दिया और मेरे ऊपर चढ़ गई। “भैया, अब मैं तुम्हें चोदूँगी,” उसने कहा और मेरे लंड को अपनी चूत में लिया। वह ऊपर-नीचे उछलने लगी। “आह्ह, नीतू, तेरी चूत मेरा लंड निगल रही है!” मैं चिल्लाया। उसने मेरे चूचों को चूसते हुए कहा, “भैया, मुझे और मज़ा दो!” मैंने उसकी कमर पकड़ी और उसे और तेज़ चलाया।
शाम ढलने लगी। हमने बाथरूम में होली की मस्ती को और बढ़ाया। नीतू ने मुझे शावर के नीचे खींचा। “भैया, पानी में चुदाई का मज़ा लो,” उसने कहा। मैंने उसे दीवार से सटाया और उसकी चूत में लंड ठोका। “आह्ह, भैया, और जोर से!” वह चिल्लाई। पानी हमारे जिस्म पर बह रहा था, और उसकी चूत मेरे लंड को गीला कर रही थी। मैंने उसकी गांड पर हाथ फेरा और कहा, “नीतू, तेरी गांड फिर चोदूँगा।” उसने मेरी पीठ में नाखून गड़ा दिए। “हाँ, भैया, मेरी गांड फाड़ दो!” वह सिसकी।
रात हुई। हम बिस्तर पर थे, और होली की थकान हमारे जिस्म में थी। नीतू ने मेरा लंड मुँह में लिया। “भैया, तुम्हारा लंड चूसूँगी,” उसने कहा और जीभ से लंड को चाटने लगी। “आह्ह, नीतू, तेरे होंठ मेरा लंड निचोड़ रहे हैं!” मैंने कहा। उसने मेरे लंड से रस निकाला और चाट लिया। “भैया, तुम्हारा रस बहुत मज़ेदार है,” वह बोली। मैंने उसे पलटा और उसकी चूत में फिर लंड डाला। “इस होली को यादगार बनाऊँगा,” मैंने कहा।
आख़िर में मेरा लंड फट पड़ा। मेरा गरम रस नीतू की चूत में भर गया, फिर उसकी गांड में, और बाक़ी उसके चूचों और होंठों पर छिड़क गया। “आह्ह, भैया, तुम्हारा रस मेरे मुँह में डालो,” नीतू ने कहा और मेरे लंड से टपकता रस चाट लिया। हम दोनों हाँफते हुए बिस्तर पर गिर पड़े। “भैया, इस होली ने हमें नया रिश्ता दे दिया,” नीतू ने हँसते हुए कहा। “हाँ, नीतू, हर होली अब ऐसी ही होगी,” मैंने जवाब दिया। होली की रंगीन चुदाई हमारे जिस्म में समा गई थी।