जेठ जी ने तड़पा-तड़पाकर चोदा – Jeth Ji Choda Sex Story

हाय दोस्तों, मेरा नाम प्रीति है। उम्र 25 साल, गोरा रंग, मोटी चूचियाँ जो मेरी साड़ी में ठूंसी हुई रहती थीं, और एक मटकती गांड जो मेरे जेठ जी, रमेश, की नजरों का शिकार बन गई थी। मैं अपने पति, सुनील, के साथ उनके गाँव के बड़े घर में रहती थी। सुनील ठीक-ठाक मर्द था, लेकिन उसकी छोटी-सी चुदाई से मेरी चूत की प्यास कभी पूरी नहीं होती थी। जेठ जी 35 साल के थे—लंबे, मजबूत, और एक ऐसा मोटा, काला लंड जो मेरे जिस्म को देखते ही सख्त हो जाता था। उनकी बीवी, यानी मेरी जेठानी, बच्चों के साथ शहर में रहती थी, और जेठ जी गाँव में अकेले थे। उनकी नजरें मुझ पर शुरू से ही गंदी थीं, लेकिन उस रात उन्होंने मुझे ऐसी तड़प दी कि मेरी चूत उनकी गुलाम बन गई।

उस दिन शाम ढल रही थी। आसमान में बादल थे, और हवा में ठंडक फैल रही थी। सुनील किसी काम से बाहर गया था, और घर में सिर्फ मैं और जेठ जी थे। मैंने एक पतली हरी साड़ी पहनी थी, जो मेरे जिस्म से चिपक रही थी। मेरा ब्लाउज पसीने से भीगा था, और मेरी चूचियाँ साफ उभर रही थीं। मेरे निप्पल ब्लाउज से बाहर झाँक रहे थे, और मेरा गोरा पेट बार-बार साड़ी से बाहर आ रहा था। मैं किचन में खाना बना रही थी, जब जेठ जी चुपके से पीछे आए। “प्रीति, आज तो तू बड़ी मस्त लग रही है,” उनकी आवाज मेरे कानों में गूँजी, और उनका हाथ मेरी कमर पर सरक गया। उनकी उंगलियाँ मेरे पेट को सहला रही थीं, और मैं सिहर उठी। “जेठ जी, ये क्या कर रहे हैं? सुनील को पता चला तो…” मैंने डरते हुए कहा। लेकिन वो मेरे और करीब आए, और उनकी साँसें मेरे गले पर गर्म लहरें छोड़ रही थीं। “सुनील को कुछ नहीं पता चलेगा, भाभी। तू आज अकेली है, और तेरी चूचियाँ मुझे तड़पा रही हैं,” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाया।

मैंने उन्हें रोकना चाहा, “जेठ जी, ये गलत है… उफ्फ…” लेकिन उनकी उंगलियाँ मेरी चूचियों पर सरक गईं, और मेरे ब्लाउज के ऊपर से उन्हें दबाने लगीं। “उफ्फ… प्रीति… तेरी चूचियाँ कितनी सख्त हैं… इन्हें चूस-चूसकर लाल करने का मन कर रहा है,” उन्होंने कहा और मेरी साड़ी का पल्लू नीचे खींच दिया। मेरा ब्लाउज फट गया, और मेरी गोरी, मोटी चूचियाँ उनके सामने उछल पड़ीं। मेरे निप्पल सख्त होकर उन्हें ललचा रहे थे। “आह्ह्ह… जेठ जी… मत करो… मुझे तड़प मत करो…” मैं सिसकार रही थी। लेकिन वो मेरी एक चूची को मुँह में भरकर चूसने लगे। “उफ्फ… प्रीति… तेरे दूध मुझे पागल कर रहे हैं… आह्ह्ह…” वो मेरे निप्पल को चूस रहे थे, कभी दाँतों से काटते, कभी जीभ से चाटते। उनकी उंगलियाँ मेरी दूसरी चूची को मसल रही थीं, और मैं तड़प रही थी। “आह्ह्ह… जेठ जी… धीरे… मेरी चूचियाँ दुख रही हैं… ओहhh…” मेरी सिसकारियाँ तेज हो गईं, और मेरी चूत में गीलापन छा रहा था।

वो मुझे तड़पाना चाहते थे। उन्होंने मेरी साड़ी पूरी खींच दी, और मेरा नंगा बदन उनके सामने था। मेरी गोरी जांघें चमक रही थीं, मेरी नाभि गहरी और सेक्सी लग रही थी, और मेरी चूत पेटीकोट से बाहर झाँक रही थी। “प्रीति, तेरा ये बदन तो किसी रंडी से कम नहीं। तेरी चूत को तड़पाकर चोदने का मन कर रहा है,” उन्होंने कहा और मुझे किचन के स्लैब पर बिठा दिया। उन्होंने मेरी टाँगें चौड़ी कीं और मेरे पेटीकोट को ऊपर उठाया। मेरी चूत उनके सामने थी—चिकनी, गोरी, और हल्के बालों से ढकी। वो मेरी चूत को घूरते रहे, और मेरे जिस्म में एक अजीब-सी बेचैनी बढ़ने लगी। “जेठ जी… मत देखो… मुझे तड़प मत करो… उफ्फ…” मैं कराह रही थी। लेकिन वो मेरी चूत पर अपनी उंगलियाँ फिराने लगे, कभी हल्के से छूते, कभी रगड़ते। “आह्ह्ह… जेठ जी… ये क्या कर रहे हैं… मेरी चूत में आग लग रही है…” मैं सिसकार रही थी।

उन्होंने मेरी चूत को तड़पाया, और फिर अपनी जीभ उस पर रख दी। “उफ्फ… प्रीति… तेरी चूत का रस मुझे बुला रहा है…” वो मेरी चूत को चाटने लगे, धीरे-धीरे, तड़पाते हुए। उनकी जीभ मेरी चूत के होंठों को चूम रही थी, और मैं पागल हो रही थी। “आह्ह्ह… जेठ जी… चाट लो… मुझे और मत तड़पाओ… ओहhh…” मैं चिल्ला रही थी। उन्होंने मेरी चूत में अपनी उंगलियाँ डाल दीं, पहले एक, फिर दो, और धीरे-धीरे अंदर-बाहर करने लगे। “उफ्फ… जेठ जी… दर्द हो रहा है… मेरी चूत फट रही है… आह्ह्ह…” मैं तड़प रही थी। वो जानबूझकर मुझे तड़पाना चाहते थे। मेरी चूत गीली हो चुकी थी, और मेरा रस उनकी उंगलियों पर चमक रहा था। “प्रीति, अभी तो तुझे और तड़पाऊंगा,” वो हँसे और मेरी चूत को चाटते हुए मुझे बिस्तर की ओर ले गए।

उन्होंने अपना पजामा नीचा किया, और उनका मोटा, काला लंड बाहर आ गया। वो लंबा था, सख्त था, और उसकी नसें फूली हुई थीं। मैं उसे देखकर डर गई। “जेठ जी… ये बहुत बड़ा है… मेरी चूत फट जाएगी… उफ्फ…” मैं काँप रही थी। लेकिन वो मेरे पास आए और अपना लंड मेरे होंठों पर रगड़ने लगे। “चूस इसे, प्रीति। तुझे तड़पाकर चोदने का मज़ा लूँगा,” उन्होंने कहा। मैंने डरते-डरते उनका लंड मुँह में लिया। “उम्म… जेठ जी… कितना गर्म है… उफ्फ…” मैं चूस रही थी, और उनका लंड मेरे गले तक जा रहा था। वो मेरे बाल पकड़कर मेरे मुँह को धीरे-धीरे चोदने लगे, “चूस, भाभी… मुझे तड़पा मत… आह्ह्ह…” वो मुझे तड़पाने में माहिर थे।

फिर उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरी टाँगें अपने कंधों पर रख लीं। मेरी चूत उनके सामने थी, गीली और तड़पती हुई। “जेठ जी… अब चोद दो… मुझे और मत तड़पाओ… उफ्फ…” मैं चिल्लाई। उन्होंने अपना लंड मेरी चूत पर रगड़ा, बार-बार, कभी अंदर डालने की कोशिश करते, कभी पीछे खींच लेते। मेरी चूत तड़प रही थी। “आह्ह्ह… जेठ जी… डाल दो… मेरी चूत मर रही है… ओहhh…” मैं रोने लगी। आखिर में उन्होंने एक जोरदार झटका मारा, और उनका लंड मेरी चूत में घुस गया। “आह्ह्ह्ह… मर गई… जेठ जी… निकाल दो… मेरी चूत फट गई… उफ्फ…” मैं दर्द से चीख पड़ी। उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर तक जा चुका था। वो धीरे-धीरे धक्के मारने लगे, जानबूझकर मुझे तड़पाते हुए। “थप-थप-थप” की आवाज कमरे में गूँज रही थी। “प्रीति, तेरी चूत को तड़पाकर चोदने में मज़ा आ रहा है,” वो गंदी बात करते हुए मेरी चूचियाँ मसल रहे थे। मैं कराह रही थी, “आह्ह्ह… जेठ जी… तेज करो… मुझे और मत तड़पाओ… ओहhh…”

धीरे-धीरे दर्द मज़े में बदल गया। मैंने उनकी कमर पकड़ ली और चिल्लाई, “चोद दो… अपनी भाभी की चूत को फाड़ दो… आह्ह्ह…” वो अब जोर-जोर से धक्के मारने लगे। फिर उन्होंने मुझे घोड़ी बना दिया। मेरी गांड हवा में थी, और वो मेरी गांड को थप्पड़ मारते हुए बोले, “प्रीति, तेरी गांड तो किसी कुतिया से कम नहीं। इसे भी तड़पाऊंगा।” उन्होंने मेरी गांड पर थूक लगाया और अपना लंड उसकी दरार में रगड़ने लगे। मैं डर गई, “जेठ जी… गांड मत मारो… उफ्फ… फट जाएगी…” लेकिन वो मेरी तड़प देखकर मुस्कुराए। उन्होंने अपना लंड मेरी गांड में धीरे-धीरे सरकाना शुरू किया। “आह्ह्ह्ह… मादरचोद… मर गई… निकाल दो… ओहhh…” मैं दर्द से चिल्ला रही थी। उनका लंड मेरी गांड को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया। वो मुझे तड़पाते हुए मेरी गांड को चोदने लगे। “उफ्फ… प्रीति… तेरी गांड कितनी टाइट है… आह्ह्ह…” मेरी सिसकारियाँ तेज हो गईं, “आह्ह्ह… जेठ जी… चोद दो… मेरी गांड को भी तड़पाओ… ओहhh…”

रात गहराने लगी थी। जेठ जी ने मुझे फिर से लिटाया और मेरी चूत में लंड पेल दिया। “प्रीति, तेरी चूत को तड़पाकर चोदने का मज़ा ले रहा हूँ,” वो गुर्रा रहे थे। मैं चिल्ला रही थी, “आह्ह्ह… जेठ जी… चोदो… मेरी चूत को रगड़ डालो… उफ्फ…” उनका लंड मेरी चूत की गहराई तक जा रहा था, और मेरी चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं। वो मेरी चूचियों को चूस रहे थे, कभी काटते, कभी मसलते, और उनकी उंगलियाँ मेरी गांड में घुस रही थीं। मैं दोहरी तड़प से चिल्ला रही थी, “उफ्फ… जेठ जी… मेरे दोनों छेद भर दो… आह्ह्ह…” वो मुझे पूरी रात तड़पाते रहे—कभी धीरे-धीरे चोदते, कभी तेज, कभी रुककर मुझे और बेचैन करते। मेरी चूत और गांड सूज गई थीं, और मेरा रस बिस्तर पर फैल रहा था।

फिर उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे मुँह में लंड ठूँस दिया। “चूस, प्रीति… मेरा रस पी ले… उफ्फ…” वो चिल्लाए। मैंने उनका लंड चूसा, “उम्म… जेठ जी… कितना गर्म है आपका लंड… आह्ह्ह…” उनका रस मेरे मुँह में छूट गया, और मैं उसे निगल गई। फिर उन्होंने अपना बचा हुआ रस मेरी चूचियों पर छोड़ दिया। मैं थककर बिस्तर पर लेट गई, मेरी साँसें तेज थीं, और मेरा बदन पसीने से तर था। मेरी चूत और गांड दर्द से भरी थीं, लेकिन तड़प के बाद जो मज़ा मिला, वो अनोखा था।