ससुर जी ने ऐसे चोदा, मैं संतुष्ट हो गई

Sasur Bahu Sex Story – Bahu Santusht Hui Sasur ke Land Se मेरा नाम राधिका है। उम्र 26 साल, गोरा रंग, भरी हुई चूचियाँ जो मेरी साड़ी में ठूंसी हुई लगती थीं, और एक मटकती गांड जो मेरे ससुर, हरदयाल जी, की नजरों का शिकार बन गई थी। मैं शादीशुदा थी, लेकिन मेरा पति, अशोक, एक कमजोर मर्द था। वो दो मिनट में थक जाता था, और मेरी चूत की प्यास कभी पूरी नहीं होती थी। शादी के दो साल बाद भी मेरे जिस्म में एक आग सुलग रही थी, जो हर रात मुझे तड़पाती थी। ससुर जी 50 साल के थे—लंबे, मजबूत, और एक ऐसा मोटा, काला लंड जो मेरी चूत को देखते ही तन जाता था। उनकी बीवी, यानी मेरी सास, कई साल पहले गुजर चुकी थीं, और उनकी वासना अब मेरे जिस्म पर ठहर रही थी। लेकिन मुझे क्या पता था कि ससुर जी मुझे ऐसे चोदेंगे कि मेरी सारी प्यास बुझ जाएगी।

एक दिन की बात है। गर्मी की दोपहर थी, और अशोक ऑफिस गया था। घर में सिर्फ मैं और ससुर जी थे। मैंने लाल रंग की पतली साड़ी पहनी थी, जिसमें मेरी चूचियाँ साफ उभर रही थीं। मेरा ब्लाउज पसीने से भीगा था, और मेरे निप्पल बाहर झाँक रहे थे। मैं किचन में खाना बना रही थी, जब ससुर जी पीछे से आए और मेरी कमर पर हाथ रख दिया। “राधिका, आज तो तू बड़ी मस्त लग रही है,” उन्होंने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा। उनकी गर्म साँसें मेरे गले पर लगीं, और मैं सिहर उठी। “ससुर जी, ये क्या कर रहे हैं? कोई देख लेगा,” मैंने डरते हुए कहा। लेकिन वो मेरे और करीब आए, और उनका हाथ मेरी चूचियों पर सरक गया। “कोई नहीं देखेगा, बहू। तेरी चूचियाँ मुझे चैन नहीं लेने देतीं,” उन्होंने कहा और मेरी साड़ी के ऊपर से मेरी चूचियों को दबाने लगे।

मैं सिसकार उठी, “आह्ह्ह… ससुर जी… मत करो… उफ्फ…” लेकिन मेरी चूत गीली होने लगी थी। उन्होंने मेरी साड़ी का पल्लू नीचे खींचा और मेरा ब्लाउज फाड़ दिया। मेरी गोरी, मोटी चूचियाँ उनके सामने थीं, और मेरे निप्पल सख्त होकर उन्हें ललचा रहे थे। “उफ्फ… राधिका… तेरे दूध कितने रसीले हैं… इन्हें चूसने का मन कर रहा है,” उन्होंने कहा और मेरी एक चूची को मुँह में भर लिया। “आह्ह्ह… ससुर जी… धीरे चूसो… मेरी चूचियाँ दुख रही हैं… उफ्फ…” मैं कराह रही थी। उनकी जीभ मेरे निप्पल पर घूम रही थी, और उनकी उंगलियाँ मेरी दूसरी चूची को कुचल रही थीं। मेरी चूत में आग लग रही थी, और मैंने उनकी कमर पकड़ ली।

उन्होंने मेरी साड़ी पूरी उतार दी, और मेरा नंगा बदन उनके सामने था। मेरी गोरी जांघें, मेरी चिकनी चूत, और मेरी मोटी गांड उन्हें बुला रही थी। “राधिका, तेरी चूत तो किसी कुंवारी की तरह लग रही है। इसे चोदने का मन कर रहा है,” उन्होंने कहा और मुझे किचन के स्लैब पर बिठा दिया। उन्होंने मेरी टाँगें चौड़ी कीं और मेरी चूत पर अपनी जीभ फिराने लगे। “आह्ह्ह… ससुर जी… क्या कर रहे हैं… मेरी चूत में बिजली दौड़ रही है… उफ्फ…” मैं सिसकार रही थी। उनकी जीभ मेरी चूत के होंठों को चाट रही थी, और मैं तड़प रही थी। “ओहhh… ससुर जी… चाट लो… मेरी चूत को चूस डालो… आह्ह्ह…” मैं चिल्ला रही थी। उन्होंने मेरी चूत में अपनी दो उंगलियाँ पेल दीं, और मैं दर्द से कराह उठी, “उफ्फ… ससुर जी… धीरे… मेरी चूत फट रही है… आह्ह्ह…” लेकिन उनकी उंगलियाँ मेरी चूत को रगड़ रही थीं, और मेरा रस टपकने लगा था।

उन्होंने अपना पजामा नीचा किया, और उनका मोटा, काला लंड बाहर आ गया। वो लंबा था, सख्त था, और उसकी नसें फूली हुई थीं। मैं उसे देखकर डर गई। “ससुर जी… ये बहुत बड़ा है… मेरी चूत फट जाएगी… उफ्फ…” मैं काँप रही थी। लेकिन वो हँसे, “राधिका, डर मत। मेरा लंड तेरी चूत को संतुष्ट कर देगा।” उन्होंने मेरा मुँह पकड़ा और अपना लंड मेरे होंठों पर रगड़ा। “चूस इसे, बहू। थोड़ा गीला कर दे,” उन्होंने कहा। मैंने डरते-डरते उनका लंड मुँह में लिया। “उम्म… ससुर जी… कितना मोटा है… उफ्फ…” मैं चूस रही थी, और उनका लंड मेरे गले तक जा रहा था। वो मेरे बाल पकड़कर मेरे मुँह को चोदने लगे, “चूस, राधिका… मेरी बहू… आह्ह्ह…”

फिर उन्होंने मुझे स्लैब से उतारा और घोड़ी बना दिया। मेरी गांड हवा में थी, और वो मेरी गांड को थप्पड़ मारते हुए बोले, “राधिका, तेरी गांड तो किसी रंडी से कम नहीं। इसे भी चोदूँगा।” उन्होंने मेरी चूत पर अपना लंड रगड़ा और एक जोरदार झटके में अंदर पेल दिया। “आह्ह्ह्ह… मर गई… ससुर जी… निकाल दो… मेरी चूत फट गई… उफ्फ…” मैं दर्द से चीख पड़ी। उनका लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अंदर घुस गया था। वो जोर-जोर से धक्के मारने लगे, और “थप-थप-थप” की आवाज किचन में गूँज उठी। “राधिका, तेरी चूत को आज संतुष्ट कर दूँगा,” वो गंदी बात करते हुए मेरी चूचियाँ मसल रहे थे। मैं कराह रही थी, “आह्ह्ह… ससुर जी… धीरे… मेरी चूत जल रही है… ओहhh…”

धीरे-धीरे दर्द मज़े में बदल गया। मैंने उनकी कमर पकड़ ली और चिल्लाई, “चोद दो… अपनी बहू की चूत को फाड़ दो… आह्ह्ह…” वो मेरी चूत को चोदते रहे, और फिर उन्होंने मेरी गांड पर थूक लगाया। “अब तेरी गांड की बारी है, बहू,” उन्होंने कहा और अपना लंड मेरी गांड में सरकाने लगे। “आह्ह्ह्ह… ससुर जी… नहीं… मेरी गांड फट जाएगी… उफ्फ…” मैं चिल्ला रही थी। उनका लंड मेरी गांड को फाड़ता हुआ अंदर घुस गया। दर्द से मेरी आँखों में आँसू आ गए, लेकिन वो रुके नहीं। वो मेरी गांड को चोदने लगे, और मेरी सिसकारियाँ तेज हो गईं, “उफ्फ… ससुर जी… धीरे… मेरी गांड दुख रही है… आह्ह्ह…” धीरे-धीरे दर्द मज़े में बदल गया, और मैं चिल्लाई, “चोद दो… मेरी गांड को भी संतुष्ट कर दो… ओहhh…”

रात गहराने लगी थी। ससुर जी ने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे ऊपर चढ़ गए। “राधिका, अब तेरी चूत को फिर से चोदूँगा,” उन्होंने कहा और अपना लंड मेरी चूत में पेल दिया। “आह्ह्ह… ससुर जी… फाड़ दो… मेरी चूत को रगड़ डालो… उफ्फ…” मैं चिल्ला रही थी। उनका लंड मेरी चूत की गहराई तक जा रहा था, और मेरी चूचियाँ हर धक्के के साथ उछल रही थीं। वो मेरी चूचियों को चूस रहे थे, और उनकी उंगलियाँ मेरी गांड में घुस रही थीं। मैं दोहरी मार से चिल्ला रही थी, “उफ्फ… ससुर जी… मेरे दोनों छेद भर दो… आह्ह्ह…” वो मुझे पूरी रात चोदते रहे—कभी घोड़ी बनाकर, कभी गोद में उठाकर, कभी दीवार से सटाकर। मेरी चूत और गांड सूज गई थीं, और मेरा रस बिस्तर पर फैल रहा था।

फिर उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मेरे मुँह में लंड ठूँस दिया। “चूस, राधिका… मेरा रस पी ले… उफ्फ…” वो चिल्लाए। मैंने उनका लंड चूसा, “उम्म… ससुर जी… कितना गर्म है आपका लंड… आह्ह्ह…” उनका रस मेरे मुँह में छूट गया, और मैं उसे निगल गई। फिर उन्होंने अपना बचा हुआ रस मेरी चूचियों पर छोड़ दिया। मैं थककर बिस्तर पर लेट गई, मेरी साँसें तेज थीं, और मेरा बदन पसीने से तर था। मेरी चूत और गांड दर्द से भरी थीं, लेकिन मेरे जिस्म की सारी प्यास बुझ चुकी थी।

सुबह ससुर जी ने मुझे गले लगाया और कहा, “राधिका, तुझे संतुष्ट कर दिया न?” मैं कराहते हुए बोली, “आह्ह्ह… ससुर जी… आपने मेरी चूत को ऐसा चोदा कि मैं पूरी तरह संतुष्ट हो गई… उफ्फ…” उस रात के बाद ससुर जी मेरे जिस्म के मालिक बन गए। जब भी अशोक घर से बाहर जाता, वो मुझे चोदकर संतुष्ट करते। उनकी चुदाई ने मुझे ऐसा सुख दिया, जो मेरे पति कभी नहीं दे पाया।